इस बिखरे हुए मंजर में,
बहारों को खोजता हु ..
दिख जाये कही इंसान,
उस नज़ारे को खोजता हु .
मै एक राही हूँ ,
निकला हूँ सफ़र पे ...
जो था मेरा ,
उस सहारे को खोजता हु ..
चला रहा हु कश्ती ,
इस लहरों भरे पानी में ,
मिल जाये कही ठिकाना,
मै उस किनारे को खोजता हु ...
अकेला हु ,
तनहा हु .
देखता हु आसमाँ में ..
बदलो में छिपे उस चाँद को खोजता हु ..
प्रेमबिंदु यानि प्रेम का केंद्र बिंदु. ये ब्लॉग मेरे द्वारा कल्पित रचनाओ का नहीं अपितु मेरे ही जीवन के पलों का लिखित रूप है. प्रेमबिंदु उर्जा का एक असीम केंद्र है , और मेरे द्वारा प्रेम को समझने और उसे आपतक पहुचाने का एक माध्यम है.
शुक्रवार, 12 अप्रैल 2013
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इस गंग प्रेम की प्रखर धार में , बह जाता ये चेतन मन ... होती है पीड़ा कष्ट बहुत , पर मिलता है अदभुत आनंद .. प्रेम के कारन जग है जीवित...
आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा शनिवार (13 -4-2013) के चर्चा मंच पर भी है ।
जवाब देंहटाएंसूचनार्थ!
सुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर....बेहतरीन रचना
जवाब देंहटाएंपधारें "आँसुओं के मोती"