शुक्रवार, 12 अप्रैल 2013

खोज

इस बिखरे हुए  मंजर में,
बहारों को खोजता  हु ..

दिख जाये कही इंसान,
 उस नज़ारे को खोजता हु .

मै एक राही हूँ  ,
निकला हूँ सफ़र पे ...
जो था मेरा ,
उस सहारे को खोजता हु ..

चला रहा हु कश्ती ,
इस लहरों भरे पानी में ,

मिल  जाये कही ठिकाना,
 मै उस किनारे को खोजता हु ...

अकेला हु ,
तनहा हु .
 देखता हु आसमाँ   में  ..
बदलो में  छिपे  उस चाँद को खोजता हु ..

3 टिप्‍पणियां:

रातों रात पेड़ काट दिए, जंगल जला दिए। हम सोए रहे, नदिया सूखा दिए। वो चिड़िया अब रोती है, घोसले गवा दिए, कुछ आंखो में पानी लाओ, जो बोतल...