सोमवार, 27 मई 2013

आगे बढता जाता हु....

तम से  घिरता ,जड़ता में बंधता ..
पथ का राही मै ,राहों से लड़ता ..
खुद को ही जला जला मै ,दीपक सा जल जाता हु ..
बस आगे बढता जाता हु ,बस आगे बढ़ता  जाता हु ...

नित नए भ्रमो की भटकन ,
राहों के वो नए नए रंग ,
इन सभी पाशों से उलझा ..
खुद ही तलवार उठता हु ..
बस आगे बढता जाता हु बस आगे बढता जाता हु ...

नित नयी वेला की आशा ,
समय चक्र का खेल तमाशा ,
रखते हुए ह्रदय मोम सा ,
"अमन "पत्थर का बन जाता हु ....
बस आगे बढता जाता हु बस आगे बढता जाता हु ...


            " अमन मिश्र "

note: pic from other blog with a lots of thank you....






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