बापू जो तुम देख लेते इस देश का हाल ,
शायद रो पड़ते .
चल देते अपनी लाठी के सहारे ,
कही एकांत में.
जहा न हो इस देश की ऐसी दुर्दशा .
लेकर जो सपना आँखों में निकले थे दांडी की तरफ ,
देखते उन्हें टूटते हुए.
देखते अपने ही लोगो को गैरों की तरह रहते हुए.
बढ़ाते हुए विषमता के पेड़ को ,
जिसे तुम चाहते थे सुखाना .
बापू इस देश में अब तुम फिर से न आना .
पर हमें पता है तुम फिर से आओगे ही ,
बन चुके इतिहास को दोहराओगे ही .
फिर से उखाड़ फेखोगे इन समाज की रुढियो को,
फिर से करोगे कुछ ऐसा की हमें मिलेगी
एक नयी आशा ...
मुझे पाता है तुम फिर आओगे ,
आखिर ये देश है तुम्हारा ..
आखिर ये देश है तुम्हारा .. "aman mishra"
शायद रो पड़ते .
चल देते अपनी लाठी के सहारे ,
कही एकांत में.
जहा न हो इस देश की ऐसी दुर्दशा .
लेकर जो सपना आँखों में निकले थे दांडी की तरफ ,
देखते उन्हें टूटते हुए.
देखते अपने ही लोगो को गैरों की तरह रहते हुए.
बढ़ाते हुए विषमता के पेड़ को ,
जिसे तुम चाहते थे सुखाना .
बापू इस देश में अब तुम फिर से न आना .
पर हमें पता है तुम फिर से आओगे ही ,
बन चुके इतिहास को दोहराओगे ही .
फिर से उखाड़ फेखोगे इन समाज की रुढियो को,
फिर से करोगे कुछ ऐसा की हमें मिलेगी
एक नयी आशा ...
मुझे पाता है तुम फिर आओगे ,
आखिर ये देश है तुम्हारा ..
आखिर ये देश है तुम्हारा .. "aman mishra"
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