कुछ तो जगह बनाई होगी ,
रूठना तेरा ,वो मेरा मनाना।
कभी तो इसकी भी याद आई होगी।
कुछ तो जगह बनाई होगी......
साथ चलना वो हसना हसाना ,
मिलती जो नजरे ,
नजरे झुकाना।
कभी तो आके सपनो में तेरे ,
तुझको आवाज लगाईं होगी ,
कुछ तो जगह बनाई होगी।
जो देखती होगी तुम,
आस्मां को नज़रे उठा के रातो में
उस अधूरे चाँद ने,
मेरी भी बात बताई होगी ….
कुछ तो जगह बनाई होगी.....
कभी तो इसकी भी याद आई होगी।
कुछ तो जगह बनाई होगी..... "
रूठना तेरा ,वो मेरा मनाना।
कभी तो इसकी भी याद आई होगी।
कुछ तो जगह बनाई होगी......
साथ चलना वो हसना हसाना ,
मिलती जो नजरे ,
नजरे झुकाना।
कभी तो आके सपनो में तेरे ,
तुझको आवाज लगाईं होगी ,
कुछ तो जगह बनाई होगी।
जो देखती होगी तुम,
आस्मां को नज़रे उठा के रातो में
उस अधूरे चाँद ने,
मेरी भी बात बताई होगी ….
कुछ तो जगह बनाई होगी.....
कभी तो इसकी भी याद आई होगी।
कुछ तो जगह बनाई होगी..... "
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी रचना ! बधाई स्वीकार करें !
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