रविवार, 1 मार्च 2015

ये दुनिया अच्छी लगती है।

खोया था जो मैंने ,
वो पाया सा  अब लगता है।
मीत बने हो तुम  जब  से मेरे ,
ये दुनिया अच्छी लगती है।

बातें  निकलीं  दिल से मेरे ,
दबीं कहीं थीं  कोने   में।  

प्राण  दिए तुमने मुझको ,
धड़कन धड़की शीने में।

लौटी है फिर सरगम की  वो धुन,
 रंग भरे लगते है  सपने ,
मीत बने हो तुम  जब  से मेरे ,
ये दुनिया रँगी  लगती है। 


मीत बने हो तुम जब से मेरे ,
    ये दुनिया अच्छी लगती है। 

पूरी  होती  लगती  मुझको,
जीवन की मेरी अभिलाषा ,
आशाओ  का  नया ठिकाना ,
तुम हो मेरी परिभाषा।  


सब कुछ तुमसे ,
अब तुम ही सब कुछ . 

तुम ही मेरी मर्यादा।
मीत बने हो तुम जब से मेरे ,
 "अमन "तुम ही दुनिया लगते  हो ।  

 मीत बने हो तुम जब से मेरे ,
    ये दुनिया अच्छी लगती है।





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