एक छोटी सी चिरैया ,नील पंखो वाली ...
आती थी मेरे घर ,बैठ के दीवार पे ,
कलरव करती ,चहक थी उसमे ..
दे देता था दो दाने सूखे हुए चावल ,
और ले उड़ जाती वो उन्हें ...
सोचा एक दिन देखे ये आती है कहा से ?
थोडा नजर दौड़ाई तो दिखा ,शीशम का एक पेड़ .
उसमे बना घोसला उसका ,और छोटे से दो बच्चे उसमे ..
अच्छा लगा देख कर ,शांति सी आई मन में ..
और गर्व भी हुआ मुझको उन दो दाने चावल देने पे ..
आह कितना बड़ा दानी है इन्सान ...मै..
पर कल रात ही वो पेड़ चुपके से काट दिया गया ,
न वो चिरैया थी ,न आज उसका कलरव था घर में ..
हा उस जगह पड़ा था एक टूटा हुआ घोसला ,और कुछ बिखरे हुए पंख .......
"अमन मिश्र "
— आती थी मेरे घर ,बैठ के दीवार पे ,
कलरव करती ,चहक थी उसमे ..
दे देता था दो दाने सूखे हुए चावल ,
और ले उड़ जाती वो उन्हें ...
सोचा एक दिन देखे ये आती है कहा से ?
थोडा नजर दौड़ाई तो दिखा ,शीशम का एक पेड़ .
उसमे बना घोसला उसका ,और छोटे से दो बच्चे उसमे ..
अच्छा लगा देख कर ,शांति सी आई मन में ..
और गर्व भी हुआ मुझको उन दो दाने चावल देने पे ..
आह कितना बड़ा दानी है इन्सान ...मै..
पर कल रात ही वो पेड़ चुपके से काट दिया गया ,
न वो चिरैया थी ,न आज उसका कलरव था घर में ..
हा उस जगह पड़ा था एक टूटा हुआ घोसला ,और कुछ बिखरे हुए पंख .......
"अमन मिश्र "
उत्तम सन्देश देती हुयी रचना. लगातार निखार आ रहा है. बधाई
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