बुधवार, 29 मई 2013

नील चिरैया

एक छोटी सी चिरैया ,नील पंखो वाली ...
आती थी मेरे घर ,बैठ के दीवार पे ,
कलरव करती ,चहक थी उसमे ..
दे देता था दो दाने सूखे हुए चावल ,
और ले उड़ जाती वो उन्हें ...

सोचा एक दिन देखे ये आती है कहा से ?
थोडा नजर दौड़ाई तो दिखा ,शीशम का एक पेड़ .
उसमे बना घोसला उसका ,और छोटे से दो बच्चे उसमे ..
अच्छा लगा देख कर ,शांति सी आई मन में ..

और गर्व भी हुआ मुझको उन दो दाने चावल देने पे ..
आह कितना बड़ा दानी है इन्सान ...मै..

पर कल रात ही वो पेड़ चुपके से काट दिया गया ,
न वो चिरैया थी ,न आज उसका कलरव था घर में ..
हा उस जगह पड़ा था एक टूटा हुआ घोसला ,और कुछ बिखरे हुए पंख .......

"अमन मिश्र "

सोमवार, 27 मई 2013

आगे बढता जाता हु....

तम से  घिरता ,जड़ता में बंधता ..
पथ का राही मै ,राहों से लड़ता ..
खुद को ही जला जला मै ,दीपक सा जल जाता हु ..
बस आगे बढता जाता हु ,बस आगे बढ़ता  जाता हु ...

नित नए भ्रमो की भटकन ,
राहों के वो नए नए रंग ,
इन सभी पाशों से उलझा ..
खुद ही तलवार उठता हु ..
बस आगे बढता जाता हु बस आगे बढता जाता हु ...

नित नयी वेला की आशा ,
समय चक्र का खेल तमाशा ,
रखते हुए ह्रदय मोम सा ,
"अमन "पत्थर का बन जाता हु ....
बस आगे बढता जाता हु बस आगे बढता जाता हु ...


            " अमन मिश्र "

note: pic from other blog with a lots of thank you....






सोमवार, 13 मई 2013

आह यही जिंदगी है..

यु बैठा तनहा ,
स्याह पन्नो को पलटता ..
जिंदगी के कुछ लम्हों को  फिर से पाने  को,
आज मै  बेक़रार हू ..

बंद आँखों से ,
लहराते सागर ,घुमड़ते आसमान को  देखता  ,

कल्पना में तेरे साथ को पाता,
खुद में ही खोता , लहरों में झूलता ..
में उन सपनो को फिर से जीने को बेक़रार हू ..

पर फिर याद आता है ,
इस समाज का चेहरा ,
हसता मुस्कुराता ,
जहर  से भरा  ,
बस पीछे हट जाते है मेरे कदम ,
अरमानो को बांध लेता हू खुद के भीतर ही ,
खुद के लिए नहीं ,बस तेरे खातिर ,
समझौते करता ,एक  झूठी हसी लिए ,
खुद के सपनो को खुद ही तोड़ता ,

सूखे पेड़ सा गिरने का इंतजार करता .
की कब आएगी कोई हवा ले जाएगी तुझे मुझसे दूर ,
कुछ न कह पाउँगा मै ,
मुट्टी भी बंद होगी ,
पर हाथ तो बंधे होगे ,
बस तेरे खातिर ,तेरी मुस्कराहट को  ,
कट जाऊंगा एक  पेड़ सा ,
बिना किसी चीख के ,बिना किसी रुदन   के .
बस तेरे खातिर ..बस तेरे खातिर ..
आह यही जिंदगी है, यही प्यार है ......................

                                                 "अमन मिश्र"

रातों रात पेड़ काट दिए, जंगल जला दिए। हम सोए रहे, नदिया सूखा दिए। वो चिड़िया अब रोती है, घोसले गवा दिए, कुछ आंखो में पानी लाओ, जो बोतल...