शुक्रवार, 27 सितंबर 2013

निशाँ

किनारों की जरुरत नहीं है मुझको ,
  लहरों से हमको  वफ़ा  चाहिये।
ख़ुशी की तो कोई तमन्ना नहीं अब,
ग़मों में  ही हमको मजा चाहिए।

मिलेगा कोई इस गैरे  महफ़िल में ,
इसकी तो कोई आरजू ही नहीं,
था कोई अपना कभी साथ अपने ,
हमें तो उसके निशाँ चाहिए।

किनारों की जरुरत नहीं है मुझको ,
  लहरों से हमको  वफ़ा  चाहिये।
                                                                    
"aman mishra"

मंगलवार, 3 सितंबर 2013

कुछ तो जगह बनाई होगी

कुछ तो जगह बनाई होगी ,
रूठना  तेरा ,वो मेरा मनाना।
कभी तो इसकी  भी याद आई होगी।

 कुछ तो जगह बनाई होगी......
  साथ चलना वो हसना हसाना ,
मिलती जो नजरे ,
नजरे झुकाना।
 कभी तो आके सपनो में तेरे  ,
तुझको आवाज लगाईं होगी ,
कुछ तो जगह बनाई होगी।

जो देखती होगी तुम,
 आस्मां को नज़रे  उठा के रातो में
उस अधूरे चाँद ने,
 मेरी भी बात बताई होगी ….
 कुछ तो जगह बनाई होगी.....

 कभी तो इसकी  भी याद आई होगी।
 कुछ तो जगह बनाई होगी.....       " 


रातों रात पेड़ काट दिए, जंगल जला दिए। हम सोए रहे, नदिया सूखा दिए। वो चिड़िया अब रोती है, घोसले गवा दिए, कुछ आंखो में पानी लाओ, जो बोतल...