शनिवार, 20 अक्तूबर 2012

उम्मीद

तुम ही थी मेरे सपनो में ,
जिन्दगी में बस तुम्हारी ही चाहत थी .

पर तुम अब साथ साथ भी नहीं,
 सपनो से दूर ,
एक झलक  को तरसाती।
क्या करू मैं , देखू सपने तुम्हारे ,
या बढ चलूँ  जिंदगी में आंगे ..
शायद  अगले मोड़ पे मिल जाओ तुम जिंदगी के ,
फैलाये हुए बाहें  अपनी ,करती मेरा ही इन्तेजार ..
पर अभी तो तुम नहीं हो ,
 न झलक भी है तुम्हारी ...........
चलो मैं आंगे बढता हु ,
 बस उम्मीद लिए।
 चलो मैं आंगे बढता हु बस ,तुम्हारे लिए।
 तुम फिर मिलोगी ना?

                                             "अमन मिश्र "
आज यूहिं  थोड़ी देर के लिए हम मित्रो में आपसी बात हुई और एक  मित्र ने मुझसे कहा की वैसे आप लिखते बहुत अच्छा है पर मुझे आपके लेखन में एक बात मुझे बहुत खटकती है की आप सिर्फ प्रेम या सौन्दर्य सम्बन्धी कविताये या लेख ही लिखते है, आज जबकि इस देश में में कई प्रकार के घोटाले , समस्याए आदि मौजूद है फिर भी आज तक आपने उनके बारे में कुछ नहीं कहा . मेरे मन में भी इसका एक  बढ़िया उत्तर आया की और इसे मै आपके साथ बताना चाहूँगा की देश की समस्याओ पर ध्यान केंद्रित करना एक बढ़िया कर्म है परन्तु किसी भी चीज की सार्थकता तभी तक ही होती है जब तक की वो अक निर्धारित सीमा के भीतर रहे, उसी प्रकार आज के सन्दर्भ में जब सभी लोग उस समस्या के निदान  खोजने में जुटे है , मै तो उन्हें अपने लेखों से बस उर्जा प्रदान कर रहा हु . आखिर क्रांति का प्रथम चरण प्रेम से ही सुरु होता है, जो प्रेम नहीं कर सकता वो क्रांति भी नही कर सकता है ,ऐसा मेरा मानना है . और आशा है की आप भी मेरे मत से सहमत होंगे।

मंगलवार, 16 अक्तूबर 2012

बंधन

आज मिली वो मुझे युही एक  रास्ते के मोड़ पे ,
 शायद जल्दी में थी या लज्जा थी कारण,
की बस मुस्कराहट ही देख पाया मै उसकी शक्ल  पे.
और आंगे बढ गयी वो,  
आज मुझे देख के फिर मुस्काई वो ,
कभी हो जाती थी बाते उससे युही  ऐसी ही टक्करों पे ,
 पर अब सिर्फ मुस्कराहट ही बाकी थी होठों पे , शब्दों  की माला  गायब थी.
सोचा और याद आया  फिर वो इज्जत का ताना
 ,जिसे न पसंद था मेरा उसका साथ .
वो समाज का चेहरा जो दिखता था बड़ा अच्छा ,
पर बातो में काटे से थे उसके .
बस यही बंधन था उसके मेरे बीच ,
हमारी बातो में ,और हमारी मुस्कराहट पे.  

जो कभी मिला ही नहीं।

अनजान  है  वो  मेरे  लिए , शक्ल  या सूरत मैंने देखी नहीं।
बस पड़ता हु उसकी बातो को ,उसकी हसी को।

है उसका इन्तेजार की कब आये वो, कुछ देर के लिए ही सही।
  मेरे पास ना सही , दूर से ही मुस्कुराये ,मेरा नाम ले वो .

बने रंग मेरे जीवन की वो और यूही रंग भरती रहे .
ख़ुशी हो या दुःख हो मेरे साथ वो चलती रहे .

 हो सवेरा या रात  का साया ,मेरे साथ हो वो . 
बस साथ में हो ,हम हमेशा .....

वो नूर है मेरी नन्ही सी दुनिया का , कोई गम न होगा उसे।
बस साथ दे वो मेरा हमेशा हमेशा के लिये।  
                                                                ''अमन मिश्र ''    
                     

yaade


रात की चांदनी में ,उसकी आहट. मिलना चुप के से ,वो बातो की नजाकत .
यूही खिलखिलाना मेरी हर बात पे उसका ,मुझे याद आता है.
उसका वो धीरे से पलके झुकाना , बातो ही बातो में नज़ारे चुराना
मुझे याद आता है........
वो आना उसका , खिलना कली सा ,
महक
ना वसंती हवाओ के जैसा ,
मुझे याद आता है ,
मुझे याद आता है.
आज वो नहीं है ,पर यादे है उसकी ,
एक तस्वीर भी जो दिल में बसी है ,
उसे ही देख के ,मै कहता हु खुद से ,
वो मुझे याद आता है,
तुम मुझे याद आते हो.
''अमन मिश्र ''

रातों रात पेड़ काट दिए, जंगल जला दिए। हम सोए रहे, नदिया सूखा दिए। वो चिड़िया अब रोती है, घोसले गवा दिए, कुछ आंखो में पानी लाओ, जो बोतल...