नैनो का वो दर्पण था ,
मदहोशी का आलम था .
पास मेरे वो बैठी थी ,
सांसो का मिलना जारी था ...
कुछ लज्जा थी उसके मन में ,
कुछ बंधन हमने तोड़े थे ,
ख्वाब हुए सच कुछ मन के अपने ,
कुछ मन में पड़े अधूरे थे ...
लग रहा था समय रुका था उस पल ,
या रिश्तो की गहराई थी ,
बातो की उन अटखेली पर वो ,
हल्का सा मुस्काई थी ..
मन ही मन ,दोनों के मन में
प्रेम का ज्वार उठा सा था ....
नैनो का वो दर्पण था ,
मदहोशी का आलम था .
कुछ देर समय युही बीता ,
अब दोनों का मन वश में न था ,
कुछ बंधन हमने तोड़े थे ,
एक बंधन उससे टूटा था ..
एक कम्पन सा था होंठो पे उसके ,
चेहरे पर एक लाली थी ,
नजरे उसकी झुकी सी थी यु ,
वो फूलो की एक डाली थी ...
शरमाई सी बैठी थी वो .
मन ने ली अंगड़ाई थी ..........
जल जाने को मन था जिसमे ,
कुछ ऐसी आग लगाई थी ....
हुआ हमें क्या था , ये हमें अभी तक याद नहीं
बस
नैनो का वो दर्पण था ,
मदहोशी का आलम था .
पास मेरे वो बैठी थी ,
सांसो का मिलना जारी था ... ...... जारी
" अमन मिश्र"
नोट : चित्र गूगल से सभार
मदहोशी का आलम था .
पास मेरे वो बैठी थी ,
सांसो का मिलना जारी था ...
कुछ लज्जा थी उसके मन में ,
कुछ बंधन हमने तोड़े थे ,
ख्वाब हुए सच कुछ मन के अपने ,
कुछ मन में पड़े अधूरे थे ...
लग रहा था समय रुका था उस पल ,
या रिश्तो की गहराई थी ,
बातो की उन अटखेली पर वो ,
हल्का सा मुस्काई थी ..
मन ही मन ,दोनों के मन में
प्रेम का ज्वार उठा सा था ....
नैनो का वो दर्पण था ,
मदहोशी का आलम था .
कुछ देर समय युही बीता ,
अब दोनों का मन वश में न था ,
कुछ बंधन हमने तोड़े थे ,
एक बंधन उससे टूटा था ..
एक कम्पन सा था होंठो पे उसके ,
चेहरे पर एक लाली थी ,
नजरे उसकी झुकी सी थी यु ,
वो फूलो की एक डाली थी ...
शरमाई सी बैठी थी वो .
मन ने ली अंगड़ाई थी ..........
जल जाने को मन था जिसमे ,
कुछ ऐसी आग लगाई थी ....
हुआ हमें क्या था , ये हमें अभी तक याद नहीं
बस
नैनो का वो दर्पण था ,
मदहोशी का आलम था .
पास मेरे वो बैठी थी ,
सांसो का मिलना जारी था ... ...... जारी
" अमन मिश्र"
नोट : चित्र गूगल से सभार