बुधवार, 27 फ़रवरी 2013

नैनो का दर्पण

नैनो का   वो  दर्पण  था ,
मदहोशी का आलम था .
पास  मेरे वो बैठी थी ,
सांसो का मिलना जारी था ...

कुछ लज्जा थी उसके मन में ,
कुछ बंधन हमने  तोड़े थे ,
ख्वाब हुए सच कुछ मन के अपने ,
कुछ मन में  पड़े  अधूरे थे ...

लग रहा था समय रुका था उस पल ,
या  रिश्तो की गहराई थी ,
 बातो की उन अटखेली पर वो ,
हल्का सा मुस्काई थी ..

मन ही मन ,दोनों के मन में
प्रेम का ज्वार उठा सा था ....
नैनो का   वो  दर्पण  था ,
मदहोशी का आलम था .

कुछ देर समय युही बीता ,
अब दोनों का मन  वश में न था  ,
कुछ बंधन हमने तोड़े थे ,
एक  बंधन उससे टूटा था  ..

एक कम्पन सा था होंठो पे उसके ,
चेहरे पर एक लाली थी ,
 नजरे  उसकी झुकी सी थी यु ,
 वो फूलो की एक डाली थी ...
 
 शरमाई सी बैठी थी वो .
मन ने ली अंगड़ाई थी ..........
जल जाने को मन था जिसमे ,
कुछ ऐसी आग लगाई थी ....

 हुआ हमें क्या था  , ये हमें अभी तक याद नहीं

बस
नैनो का   वो  दर्पण  था ,
मदहोशी का आलम था .
पास  मेरे वो बैठी थी ,
सांसो का मिलना जारी था ...           ...... जारी
                                              " अमन मिश्र"



नोट :  चित्र गूगल से सभार






1 टिप्पणी:

  1. बहुत खुबसूरत कोमल अहसास और सुंदर शब्द संयोजन, अभिव्यक्ति बधाई

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