सोमवार, 5 नवंबर 2012

ऐ प्रेम तुम हो क्या ?

ऐ प्रेम तुम हो क्या?

समर्पण का नाम ,

या निर्मल सा एक भाव ?

किसी ने पाया तुम्हे उजाले में,

किसी ने अंधेरो में पाया,

कोई कहता है की सुख हो तुम ,

कोई कहे दुःख की छाया .

ऐ प्रेम तुम हो क्या?

एक सरसराहट से ,

एक झनझनाहट से ,

मीठी सी बोली से ,

चुभते से बाणों से .

एक एहसास हो ,

जो अनकहा है ,

या पन्ना जिंदगी का ,

जो अनछुआ है .

ऐ प्रेम तुम हो क्या ?

कोई त्याग में देखता है तुम्हे ,

कोई ममता में मानता है ,

किसी के लिए शांति हो तुम ,

कोई युद्ध से जानता है .

दिव्यता की मूरत हो ,

या सुन्दर सा ख्वाब हो .

ऐ प्रेम तुम हो क्या?

ऐ प्रेम तुम हो क्या?

"अमन मिश्र "

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