बहारों को खोजता हु ..
दिख जाये कही इंसान,
उस नज़ारे को खोजता हु .
मै एक राही हूँ ,निकला हूँ सफ़र पे ...
जो था मेरा ,
उस सहारे को खोजता हु ..
चला रहा हु कश्ती ,
इस लहरों भरे पानी में ,
मिल जाये कही ठिकाना,
मै उस किनारे को खोजता हु ...
अकेला हु ,
तनहा हु .
देखता हु आसमाँ में ..
बदलो में छिपे उस चाँद को खोजता हु ..
आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा शनिवार (13 -4-2013) के चर्चा मंच पर भी है ।
जवाब देंहटाएंसूचनार्थ!
सुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर....बेहतरीन रचना
जवाब देंहटाएंपधारें "आँसुओं के मोती"